25 February 2014

इष्टकाल

ढाई का हिसाब समझाने के बाद गुरु जी इष्टकाल के हिसाब पर आ गए। ज्योतिष में समय को घड़ी के घंटा मिनट के हिसाब से नहीं पहचाना जाता है। सूर्योदय के हिसाब से पहचाना जाता है। यहाँ पर सूर्योदय से सूर्योदय तक का सफ़र किया जाता है। जैसे आज सोमवार है। तो अँग्रेजी हिसाब से सोमवार रात्रि १२ बजे समाप्त हो जायेगा। मगर ज्योतिष में जब तक अगला सूर्योदय नहीं आएगा सोमवार ही कहलायेगा। अभी समय हो रहा है रात्रि के ११:१२। तो इसका इष्टकाल बनाना है। अब प्रश्न उठता है इष्टकाल है क्या ? यह तो गुरु जी ने बताया नहीं। सीधे उन्होंने कहा घटी-पल-घंटा-मिनट समझ गए हो चलो अब इष्टकाल सिख लो। मैंने भी नहीं पूछा इष्टकाल क्या होता है? मैं अजीब तरह का उज़बक हूँ। जो सिखाना है सिखाते चलो सीखता चलूँगा।
समय है रात्रि के ११:१२। तो सबसे पहले इसमें १२ जोड़ दें। तब समय हुआ २३:१२। इसमें देशान्तर जोड़ दें। अब देशान्तर क्या होता है ? हम जहाँ रहते हैं वहाँ से जहाँ का पंचांग है वहाँ की दूरी। यह दुरी पूरब पश्चिम की दुरी होती है। मैं जमशेदपुर में रहता हूँ तो जमशेदपुर की दुरी भारतीय मानक समय से १४ मिनट ४८ सेकेण्ड की है। अर्थ यह कि यहाँ १४ मिनट ४८ सेकेण्ड पहले सूर्योदय हुआ है। अतः इस १४ मिनट ४८ सेकेण्ड को २३:१२ में जोड़ देंगे। तब होगा २३:२६:४८। यहाँ ध्यान यह रखना होगा कि जिस पंचांग को आधार मानकर आप चल रहे हैं वह पंचांग है कहाँ का ? हम भारतीय मानक समय को आधार मानकर चल रहे हैं। हमारे गुरूजी बनारसी पंचांग को आधार मानकर चलते थे। यह भारतीय मानक समय क्या बला है? भारतीय मानक समय का निर्धारण ८२:३० पूर्वी रेखांश पर हुआ है। यह रेखांश देशान्तर के हिसाब से है। भारतीय मानक समय का निर्धारण जहाँ से हुआ है वहाँ ५ घंटा ३० मिनट पहले सूर्योदय होता है। तो मैं यहाँ जमशेदपुर में हूँ। जमशेदपुर ८६:१२ पूर्वी रेखांश पर अवस्थित है। अतः गणित बनेगा
८२:३० में ५:३० तो ८६:१२ में कितना ? ८६:१२ * ५:३० / ८२:३० = ५१७२ * ३३० / ४९५० = ३४४.८ = ५ घंटा ४४ मिनट ४८ सेकंड।
यह हुआ 0 रेखांश से जमशेदपुर तक की देशांतरीय दुरी। भारतीय मानक समय से जमशेदपुर की दुरी होगी ५:४४:४८ -५:३०:०० = १४:४८ अर्थात १४ मिनट ४८ सेकेंड।
१८ फरवरी २०१४
सूर्य का करवट बदलना वेलांतर कहलाता है। पञ्चाङ्ग में इसी को रेलवे अंतर का नाम देकर रखा गया है। सूर्य के इसी क्रिया के कारण दिन और रात बड़ा- छोटा होता है। करवट बदलने के क्रम में कभी सूर्य बाएं जाते हैं तो कभी दायें। चाहे दक्षिण चाहे वाम हमको बस सोने से काम। जी हाँ, सूर्य आराम फरमा रहे हैं। चक्कर तो पृथ्वी लगा रही है। और हम भ्रमवश यही  समझते हैं कि……………. खैर यहाँ भ्रम में ही रहना है। सूर्य में गति है यही समझना है। 
२० फरवरी २०१४
तो करवट बदलने के क्रम में सूर्य कभी दक्षिण जाते हैं कभी वाम। यह होता यूँ है, सर्वविदित है पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा में लगी हुई है। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने में  एक वर्ष का समय लगता है तथा अपने अक्ष पर घूमने में एक दिन-रात का। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इसलिए सूर्य पूर्व में उदय एवं पश्चिम में अस्त होते दीखते हैं। मगर पृथ्वी अपनी कक्षा के तल पर सीधी नहीं घूमती है, करीब २३ अंश २६ कला झुककर घूमती है। यह झुकना एक कोण बनाता है। इसी कोण को खगोल में  विषुवत वृत्त नाम दिया गया है और  झुकाव को विषुवत वृत्त बिंदु।
सूर्य पृथ्वी की मध्य रेखा अर्थ यह कि भूमध्य रेखा को दक्षिण से उत्तर की ओर पार करते हैं तो यह पार करने को वसंत विषुव कहते हैं। क्योंकि आमतौर पर उत्तरी गोलार्द्ध में यह काल वसंत ऋतु के आगमन का काल होता है। सूर्य बसंत विषुव पर २१ मार्च या इसके आसपास होते हैं। तब दिन और रात बराबर होता है। इसके बाद दिन बढ़ने लगता है और रात घटने लगती है।
   इसी प्रकार सूर्य जब भूमध्य रेखा को उत्तर से दक्षिण की ओर पार करते हैं तो हम उत्तरी गोलार्द्ध वाले उस समय के विषुव को शरद विषुव कहते हैं। क्योंकि इस विषुव के साथ ही हमारे यहाँ शरद ऋतु का आगमन होता है। यह २३ सितम्बर के आस-पास होता है। इस विषुव पर भी दिन और रात बरावर होता है। इसके बाद दिन घटने एवं रात बढ़ने लगती है।
इन दिनों में सूर्य ठीक पूर्व में उदय होते हैं और ठीक पश्चिम में अस्त होते हैं।
वसंत विषुव से सूर्य उत्तर की ओर बढ़ना शुरू करते हैं और जब ९० अंश दूर चले जाते हैं तो वह उच्चतम क्रांति और अधिकतम उन्नतांश प्राप्त कर लेते हैं। यह बिंदु, जो वसंत एवं शरद विषुव के बीच में स्थित होता है उत्तर अयनांत बिंदु कहलाता है। सूर्य इस बिंदु पर लगभग २१ जून को पहुँचते हैं और इस दिन को ग्रीष्म अयनांत दिवस कहा जाता है क्योंकि हमारे उत्तरी गोलार्द्ध में उस समय ग्रीष्म ऋतु अपने चरम पर होती है। ऐसे हमारे यहाँ गरमी के बाद मानसून की बारिस भी शुरू हो जाती है। तब दिन बहुत बड़ा होता है और रात कब कट जाती है, पता ही नहीं चलता।
         ग्रीष्म अयनांत दिवस के बाद सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ना शुरू करते हैं।  और जब वे उत्तरी अयनांत से क्रांति वृत्त पर १८० अंश चल चुके होते हैं तो हम उत्तरी गोलार्द्ध वालों के यहाँ दक्षिणी  अयनांत दिवस होता है जिसको शीत अयनांत दिवस कहते हैं जो करीब २२ दिसंबर को होता है।  इस समय सूर्य न्यूनतम उन्नतांश पर होते हैं और दक्षिणी क्रांति उच्चतम होती है। तब ठिठुरन वाली ठंढी होती है। रात काटे नहीं कटती है और दिन इतना छोटा हो जाता है कि................ . दक्षिणी गोलार्द्ध के लिए यह क्रम उल्टा होता है।
          तो यही कहानी है सूर्य के करवट बदलने की। जिससे दिन-रात बड़ा-छोटा और बराबर होता है। ऋतु परिवर्तन होता है।  हमलोग भारतवासी उत्तरी गोलार्द्ध के हैं, अतः सूर्य जब दक्षिणपंथी होंगे तब हमें ठिठुरना पड़ेगा और वामपंथी होंगे तो उनकी तपिश से बचने के उपाय ढूंढने होंगे।
इसी दक्षिण-वाम के कारण इष्टकाल बनाने के लिए वेलांतर संस्कार करना पड़ता है।
देशान्तर संस्कार करने के बाद समय आया था २३:२६:४८। इसमें आज का वेलांतर लगभग १२ मिनट घटा देना होगा। तब संस्कारित समय आया २३:१४:४८। इसमें आज के सूर्योदय को घटाना होगा। सूर्योदय है प्रातः ६:२२। तब २३:१४:४८ -६:२२ = १६:५२:४८। अब १६:५२ ४८ को घट्यात्मक बनाने के लिए उसमें २.५ से गुणा करेंगे तो १६:५२:४८ * २.५ = ४२:१२। अर्थ यह कि इष्टकाल = ४२ घटी १२ पल। आशा है पाठकगण इष्टकाल क्या है ? समझ गए होंगे। हम तो ५ मिनट की बैठकी में इष्टकाल बनाने लग गए थे।
Ravindrakumar Pathak Dilipji thodi aur mihanat chaahiye. kripayaa yaha bhi spashta karen ki aisaa kyon?- 1 सूर्य का करवट बदलना वेलांतर कहलाता है। पञ्चाङ्ग में इसी को रेलवे अंतर का नाम देकर रखा गया है। 2 इसी दक्षिण-वाम के कारण इष्टकाल बनाने के लिए वेलांतर संस्कार करना पड़ता है।
रेलगाड़ी में बैठने के बाद जो भ्रम की स्थिति बनती है,वही वेलांतर के बनने के क्रम में बनती है। इसीलिये  दैवज्ञों ने इसे रेलवे अंतर नाम दिया है। अब रेल गाड़ी में भ्रम की स्थिति क्या बनती है ? भ्रम की स्थिति यह बनती है कि हम रेलगाड़ी में बैठे होते हैं। रेलगाड़ी प्लेटफार्म पर खड़ी रहती है, सामने के प्लेटफार्म पर दूसरी खड़ी गाड़ी एकाएक चलने लगती है और हमें अनुभूति होती है कि हमारी ही गाड़ी चलने लगी है। तो कभी अनुभूति होती है कि हम रुके हुए हैं और प्लेटफार्म चल रहा है, तो पेड़ चल रहा है जबकि चल रही होती है हमारी रेलगाड़ी। 

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